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Sunday, 5 April 2015

दीनानाथ भास्कर ने एकबार फिर बसपा से नाता तोड़ा

कहा, पार्टी मे लगातार हो रही उपेक्षा 
एक के बाद एक चुनाव हार रही बहुजन समाज पार्टी में अब सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी अध्यक्ष मायावती ने कई पार्टी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो कई उपेक्षा व टिकट ना मिलने से नाराज स्वतंः पार्टी छोड़ने लगे है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के दलित समाज के वरिष्ठ नेता दीनानाथ भास्कर ने शनिवार को एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता व प्रमुख पदों से इस्तीफा दे दिया है। इसके पहले भी वह मायावती से आंतरिक विवादों के चलते 1996 में बसपा से इस्तीफा दे चुके है। जबकि 2006 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की उपेक्षात्मक रवैसे इस्तीफा दे चुके है। श्री भास्कर का आरोप है कि सपा हो बसपा दोनों ने उनकी क्षमता, बुद्धि व समाज की उपयोगिता के लिए उनका इस्तेमाल किया, लेकिन जब जब उनकी लोकप्रियता बढ़ी तो उनकी उपेक्षा कर किनारे लगा दिया गया। हाल ही में बसपा सुप्रीमों मायावती ने चुनाव प्रचार से लेकर दलित समाज को एकजुट करने में भरपूर इस्तेमाल किया, लेकिन जब उनके कर्मक्षेत्र औराई विधासभा से प्रत्याशी बनाने की बात आई तो 60 लाख रुपये दुसरे से लेकर उसे प्रत्याशी बना दिया जिसका न कोई जनाधार है और न ही क्षेत्र में वजूद। 
श्री भास्कर ने इस्तीफे की घोषणा भदोही में पत्रकारों से बातचीत के दौरान की। श्री भास्कर ने बताया कि वह 1984 से मान्यवर कांसीराम के साथ रहकर दलित समाज को जोड़ने का काम करते रहे। उनके लगन व मेहनत को देखते हुए कांसीराम ने वर्ष 1987 में वाराणसी का जिलाध्यक्ष बना दिया। वह 1996 तक वाराणसी से जिलाध्यक्ष रहे। इसके बाद वह चंदौली से विधायक चुने गए। लेकिन बसपा में उनकी बढ़ती साख को देखकर मायावती ने जब उनकी उपेक्षा करनी शुरु की तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद मुलायम सिंह यादव से मिलकर सपा ज्वाइन कर ली थी। सपा में भी वह भदोही विधानसभा से दो बार विधायक रहे, लेकिन 2006 के उपचुनाव में मुलायम ने बाहुबलि के कहने पर मेरा टिकट काट दिया फिर भी पार्टी से जुड़ा रहा, लेकिन उपेक्षा के चलते जब घूटन होने लगी तो सपा से भी इस्तीफा दे दिया। 
वर्ष 2009 में मायावती द्वारा बुलाये जाने पर उनकी मुलाकात सीएम आवास पर हुई और उन्होंने यह कहकर बसपा से जोड लिया कि आप फिर से अपने पूरे तेवर के साथ काम करिए। मायावती जी के कहने पर ही मैने पूरी सक्रियता से पार्टी को मजबूत बनाने में जुटा रहा। उनकी सक्रियता को देखते हुए मायावती ने इलाहाबाद-मिर्जापुर मंडल का कोआर्डिनेटर बना दिया। वर्ष 2012 के विधानसुभा चुनाव औराई से प्रत्याशी बनाने के लिए कहा था लेकिन यहकर दुसरे को टिकट दे दिया कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मछलीशहर से लोकसभा प्रतत्याशी बनायेंगे। लेकिन तब भी उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया, वाराणसी मंडल का कोआर्डिनेटर बना दिया। इसके अलावा मेरे कर्मठता को देखते हुए झारखंड प्रदेश का प्रभारी बना दिया और पूर्वांचल सहित पूरे झारखंड के बाहुबलि प्रत्याशियों के इलाकों में उनकी तैनाती की। मायावती शुरुवाती दौर से ही चाहती थी कि भास्कर राजनीति चैपट हो जाय इसके लिए उनका शारीरिक, मानसिक व आर्थिक इस्तेमाल भरपूर किया। सभी चुनाव संपंन हो जाने के बाद वह मायावती से मिलना चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने लखनउ व दिल्ली दोनों जगहों के निवास व कार्यालय पर सम्पर्क किया लेकिन मिलने से इंकार कर दिया गया। इसके बाद औराई से पैसा लेकर टिकट दुसरे को दे दिया गया। पार्टी के अन्य कोआर्डिनेटर भी उनकी उपेक्षा करने लग गये थे। लगातार उपेक्षा से वह घूटन महसूस करने लगे थे। ऐसे में उन्होंने सोचा कि अब बीएसपी में उनका बने रहना ठीक नहीं है, जिससे आज अपना इस्तीफा मायावती को भेज दिया है। 
गौरतलब है कि इसके पहले पार्टी के दिग्गज नेता माने जाने वाले अखिलेश दास, दारा सिंह चैहान, कादिर राणा, शाहिद अखलाक के बाद मायावती ने पार्टी के वरिष्ठ नेता जुगुल किशोर को भी पार्टी से बाहर का रास्ता पहले ही दिखा दिया है। मायावती पर पैसे लेकर सीटें बेचने का आरोप लगाया है। इसके पहले भी सभी ने कुछ इसी तरह के आरोप लगाएं थे। लखीमपुर की मोहम्मदी सीट से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी ने भी मायावती पर ये ही आरोप लगाए हैं। मायावती के इन फैसलों की वजह से पार्टी में मायावती के खिलाफ विरोध के सुर और तेज होने लगे हैं। अब पार्टी के मौजूदा विधायक भी मायावती को आड़े हाथों ले रहे हैं। वहीं कांशीराम के करीबी रहे बाबूलाल कुशवाहा, राजबहादुर, बलिहारी बाबू को भी पार्टी में शून्य कर दिया गया है। दूसरी ओर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्या का कहना है कि सभी को पार्टी से निकाला जा रहा है और जिन लोगों को भी पार्टी से निकाला गया है उनकी किसी भी पार्टी में तरक्की नहीं हुई है।

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