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Monday, 8 December 2014

उफ ये जुकाम (Cold)





 
सर्दियों में जुकाम होना आम बात है और खासकर धारणा यह बनी हुई है कि यदि गर्म के ऊपर ठण्डा ले लिया जाए या ठण्डे के ऊपर गर्म ले लिया जाए तो जुकाम बन जाता है। ऐसा कुछ भी तथ्यात्मक नहीं है। जुकाम का कारण ‘‘एडिनोवायरस’’ नामक सूक्ष्म जीवाणु है, यह जीवाणु नाक की लेमीय झिल्ली पर आक्रमण कर अपना विष छोड़ने लगता है, नाक उस विष से मुक्ति पाने के लिए तेजी से लेमा का उत्पादन करने लगती है। यही कारण है कि जुकाम होने पर पानी बहना, कफ निकलना या नाक बन्द हो जाना आदि जैसी समस्याऐं आती हैं। छींक आना भी इसी जीवाणु की वजह से होता है।

जैसे ही जुकाम होता है, शरीर वैसे ही अपने अन्दर ‘‘एडिनोवायरस’’ को मारने के लिए एन्टीवॉडिज़ डवलप करने लग जाता है और अमूमन जुकाम 3 या 4 दिन में ठीक हो जाता है। चूंकि यह वायरस जन्य रोग है, इस कारण इस रोग की दवा आज तक नहीं बनाई जा सकी है और जुकाम की स्थिति में दवा लेना भी ठीक नहीं है।

उपचार :–

यदि रोगी की नाक बह रही है साथ में सूखी खाँसी भी उठ रही है तो उसे 8–10 दिन तक नियमित रूप से गर्म पानी की जलनेति कुंजल करना चाहिए ताकि जो लेमा तेजी से बनकर कफ पैदा कर रहा है, उसकी सफाई हो सके।

रोग की स्थिति में चाहे जुकाम नया हो या पुराना– छाती, नाक व गले की भाप अवश्य लेनी चाहिए। भाप नीम + यूकेलिप्टस पत्तियों द्वारा तैयार की जाकर ली जा सकती है। जुकाम में फेफड़ों को पूरी मात्रा में आक्सीजन नहीं मिल पाती है, अतः लोकल भाप लेकर छाती की लपेट भी ले ली जाये तो अधिक फायदा पहुँचाती है।

बिगड़ा हुआ जुकाम :–


बिगड़े हुए जुकाम की स्थिति में साइनो साइटिस होने का खतरा रहता है। इस स्थिति में 10–15 दिन तक जलनेति के साथ–साथ सूत्रनेति बिगड़े हुए जुकाम को काबू में करती है। सूत्रनेति द्वारा शरीर में बनने वाला लेमा नाक की साइनस हड्ड़ी पर जमने नहीं पाता है।

जब साइनस पर लेमा जमने लगता है तो यह श्वांस लेने में बाधा पहुँचाता है, फलस्वरूप सिर दर्द, माइगेरन व अस्थमा जैसे रोगों को न्यौता देता है। सूत्रनेति, जलनेति, भाप–स्नान, छाती का सेक व लपेट प्राकृतिक चिकित्सा विधि के तहत आशातीत लाभ पहुँचाते हैं। सूर्य–भेदी, नाड़ी–शोधन प्राणायाम फेफड़ों को आक्सीजन देकर नवजीवन प्रदान करते हैं।


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