राशन कार्ड को लेकर दिये गये तुगलकी फरमान से गरीब परेशान
जौनपुर। राशन कार्ड के लिये 3 बार फार्म भरकर जमा करने के बाद चैथी बार फिर से फार्म भरकर जमा करने के प्रदेश सरकार के तुगलकी फरमान से आमजन में काफी असंतोष बढ़ने लगा है। इस सम्बन्ध में लोगों की तीखी प्रतिक्रिया है कि आखिर सरकार बार-बार नये राशन कार्ड बनाने के लिये फार्म भरवाकर जमा कराने के बाद उसे निरस्त कर पुनः फार्म जमा करने का कार्य क्यों करा रही है?
इस तरह की प्रतिक्रिया के तहत अब तक लोग 3 बार फार्म भरकर नये राशन कार्ड हेतु जमा कर चुके हैं लेकिन राशन कार्ड अभी तक नहीं मिल सका। अलबत्ता उसे निरस्त करके उपभोक्ताओं को बिना किसी कारण के नये राशन कार्ड हेतु फार्म भरवाकर जमा करने के बाद उसे कूड़ेदान में डाल देना सरकार के तुगलकी मानसिकता का प्रतिफल ही जान पड़ता है। लोगों की प्रतिक्रिया है कि आखिर आगे कब तक यह तुगलकी सिलसिला जारी रहेगा? क्या चैथी बार भी फार्म भरवाकर जमा करने के कुछ दिन बाद दूसरा फरमान पुनः फार्म जमा करने का जारी होगा?
लोगों का आरोप है कि फार्म सहित उस पर फोटो लगाकर जमा करने की पूरे प्रदेश में की गयी प्रतिक्रिया में बार-बार फार्म भरने व जमा करने मंे उपभोक्ताओं का लाखों रूपये अनावश्यक खर्च होता चला आ रहा है लेकिन तुगलकी फरमान बैठे-बैठे जारी करने वाली सरकार पर इसा रंच मात्र भी असर पड़ता नहीं दिखता है। इससे गरीब उपभोक्ताओं पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ रहा है जिसका वहन कर पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। अब प्रश्न यहां यह उठता है कि आखिर इस तरह से राशन कार्ड बनाने के नाम पर फार्म बार-बार जमा करने का सिलसिला कब तक जारी रहेगा? दूसरी तरफ आम राशन कार्डधारक परेशान होकर इधर-उधर की दौड़ लगा रहे हैं कि आखिर चैथी बार फार्म कैसे भरा जायेगा तथा उसकी क्या प्रतिक्रिया है?
इस सम्बन्ध में आपूर्ति विभाग के अधिकारी कार्डधारकों को जानकारी देने के बजाय चैन की बांसुरी बजा रहे हैं। विभाग द्वारा सीधे जनता को सरकार के तुगलकी फरमान की जानकारी न देकर बिचैलियों के जरिये देने का कार्य करने से आम उपभोक्ताओं को पूरी तरह से जानकारी नहीं मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में लोग जानकारी के बाबत इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। वहीं अब नये आदेश में घर के मुखिया पुरूष की जगह अब महिला मुखिया के नाम व फोटो के साथ फार्म भरकर जमा करना अनिवार्य कर दिया गया है। इस समस्या का निर्वाण कैसे होगा, इसका जवाब कौन देगा? ऐसे उपभोक्ता आपूर्ति कार्यालय व सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान का चक्कर लगाने को मजबूर हैं।