यूजर्स को इंटरनेट सर्फिंग की पूरी आजादी होनी चाहिए। इसमें किसी सर्विस या साइट एक्सेस को लेकर किसी तरह की बंदिश या राेक नहीं होनी चाहिए। यानी उपभोक्ता को डेटा पैक के लिए एक बार पेमेंट करने के बाद यह तय करने की आजादी होनी चाहिए कि वह इंटरनेट को किस तरह यूज करेगा। टेलीकॉम ऑपरेटर को अपनी सर्विस के लिए पेमेंट मिलने के बाद इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि कस्टमर ए साइट को देख रहा है या बी।
इसके हिसाब से इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को अपने उपभोक्ता को कानूनी रूप से सभी वेबसाइट और सर्विस का बराबर एक्सेस दे। कुछ सर्विस प्रोवाइडर्स के ऐसी कुछ स्कीमें लाने की वजह से यह चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें कुछ वेबसाइट्स या सर्विसेज को प्रायरिटी दी गई है या उनके साथ भेदभाव किया गया है। यानी सर्विस प्रोवाइडर्स को उपभोक्ता के साथ कॉस्ट, एक्सेस, स्पीड और कंटेंट के मामले में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।
- अगर इंटरनेट पर पहले आने वालों को स्पेशल एक्सेस मिलता तो गूगल सर्च और गूगल की ईमेल सर्विस जीमेल अभी दुनिया में सबसे आगे नहीं होती।
- गूगल की सर्च सर्विस से पहले याहू की इस तरह की सर्विस और आस्क जीव्स और एल्टा विस्टा जैसे प्रॉडक्ट्स थे। माइक्रोसॉफ्ट की हॉटमेल का दबदबा होने के बाद जीमेल लॉन्च की गई थी।
- नेट न्यूट्रलिटी की वजह से ही गूगल की ऑरकुट को मार्क जकरबर्ग की सोशल नेटवर्क साइट फेसबुक ने मार्केट से बाहर कर दिया। फेसबुक ने रुपर्ट मर्डोक की मायस्पेस को भी पीछे छोड़ा था।
- माइक्रोसॉफ्ट ने इंटरनेट पर मोजैक के नाम से स्पेशल स्पेस का प्रपोजल देकर नेट नॉन-न्यूट्रलिटी की एक शुरुआती कोशिश की थी। इसके जवाब में मोजिला आया, यह एक ब्राउजर है जो ओपन सोर्स पर काम करता है।
- अगर टेलीकॉम कंपनियां एसएमएस को विशेष फायदा दे सकतीं तो आज वॉट्सएप मेसेजिंग सर्विस का नामोनिशान नहीं होता।
