बच्चों की आंखों में उज्जवल भविष्य के सपने तो है मगर...
समाज के आइने में दाग साबित हो रहे बालश्रमिक
दिनों दिन बढ़ते जा रहे जिले में बाल श्रमिक
जौनपुर। आर्थिक तंगी और पेट की आग बुझाने के लिए ही बाल श्र्रमिकों का जन्म होता है। जिले के गली मुहल्लों की खाक छानते तमाम मासूम बच्चे ऐसे है जो कचरे के ढेर से कबाड़ बीनकर रोटी की जुगत कर रहे हैं। इन बच्चों की आंखों में उज्जवल विष्य के सपने तो हैं। मगर हालात उन सपनों को पूरा करने की इजाजत नहीं देते। बालश्रमिकों की मनोदशा व उनकी स्थिति के बारे में जानकारी करने पर पता चला कि अनेक बच्चे चाय-पान की दुकानेां, होटल, ढाबों, साइकिल व बाइक मरम्मत की दुकानों पर मजदूरी करते देखे गये। उनकी दशा काफी शर्मनाक व समाज के आइने में एक धब्बा सा लगा दिखाई दिया क्योकि उन्हे जिस उम्र में पुस्तकें होनी चाहिए उन हाथेंा में जूठी थाली साफ करने से लेकर साइकिल व बाइक में हवा रने व पंचर बनाने मंे समय बीतता है। शहर के अनेक मुहल्लों में 10-12 साल के बच्चे कचरों की ढेर से कबाड़ चुनने का काम करते देखे गये। इन बच्चों से पूछताछ करने पर उन्होने बताया कि स्कूल जाने की इच्छा व पढ़ाई की जोरदार ललक होने के बावजूद उनके विष्य के साथ उनकी ही मजदूरी से अपना परिवार चला रहे हैं। इस समस्या पर यदि बुनियादी नजर डाली जाय तो इन श्रमिकों से ज्यादा जागरूकता उनके अभिावकांे को करनी चाहिए क्योकि कही कहीं बालश्र्रमिकों के अभिावक खुद श्रमिक बनकर बच्चों को बालश्रमिक बनाकर साथ -साथ काम करते हैं। ऐसा नजारा ईट ट्ठों पर छोटे उद्योग धन्धों में साफ नजर आता है। शासन ने जहां इन बालश्रमिकों कें कल्याण हेतु बालश्रमिक विद्यालय, निःशुल्क ोजन व अन्य सुविधायें मुहैया किया है। अधिकांश बालश्रमिक विद्यालय सिर्फ कागजोें पर चल रहे हैं तथा कुछ विद्यालय बच्चों को एबीसीडी पढ़ा रहे हैं। परन्तु ऐसे बालश्रमिक विद्यालयो से निकलने वाले बच्चे आगे कहां शिक्षा हेतु गये उन्हे कहां समायोजित किया गया यह बताने से कतरा रहे हैं। जिसके कारण आज ी सैकड़ों बच्चे बाल श्रम करते हुए देखे जा सकते हैं। जिले में बाल श्रमिक दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। तमाम बच्चे कूड़े के ढेर में अपनी रोजी रोटी तलाशते दिखायी देते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं सर्वशिक्षा अभियान की विफलता का सबूत है जिले के बाल श्रमिको की बढ़ती संख्या। श्रम विभाग बालश्रमिकों का शोषण करने वालों से धनवसूली करके किनारा कर लेते हैं। सर्व शिक्षा अभियान को सफली ूत बनाने के लिए ारत सरकार ने 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दिये जाने की काफी पहले घोषणा की थी। जिसके लिए केन्द्र सरकार ने करोड़ों रूपये का बजट ी निर्धारित किया। लेकिन विभागीय अधिकारियों के कारण केन्द्र सरकार की जनहितकारी यह योजना सार्थक होती नजर नहीं आ रही है।
