जौनपुर। लगभग 16 वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात रहने के साथ क्षेत्रीय होने का लाभ उठाते हुये सरकारी सेवा कर रहे हैं केराकत सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर अधिसंख्य पद पर तैनात लिपिक जबकि शासनादेशानुसार उक्त केन्द्र पर वह पद ही नहीं है। उक्त पद न होने के बाद वह कर्मचारी जो मृतक आश्रित कोटे से हैं, लगभग 16 वर्षों से सर्प की तरह कुण्डली मारकर बैठे हैं। सूत्रों के अनुसार नियमानुसार उनकी यहां पर तैनाती ही नहीं होनी चाहिये। बताया जाता है कि उस लिपिक की मनमानी का इससे बड़ा और क्या प्रमाण होगा कि एक स्टाफ नर्स को सरकारी आवास उपलब्ध न कराने के साथ उन्हें मिलने वाला आवास भत्ता नियम के तहत न देकर काट दिया गया। उस लिपिक की तानाशाही का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (प्रशासनिक) डा. प्रसन्न कुमार द्वारा आवास न मिलने और उनका आवास किसी और को उपलब्ध कराने की स्थिति में आवास भत्ता दिये जाने का निर्देश दिया गया था लेकिन उस लिपिक ने अपनी तानाशाही के चलते जिले स्तर के उस अधिकारी के निर्देशों को ताख पर रखकर स्टाफ नर्स का आवास भत्ता दिसम्बर 2014 से काट दिया गया। दूसरी ओर प्रश्न यह उठता है कि किस नियम-कानून के तहत व किसके आदेश पर अपनी कृपापात्र संविदा पर नियुक्त दो नर्सों को सरकारी आवास उक्त लिपिक ने आवंटित कर दिया? क्या इस तरह का कोई शासनादेश है? अगर है तो फिर संविदा पर कार्यरत डा. अशोक सोनकर को स्थानीय चिकित्सा अधीक्षक से आवास मांगने पर क्यों कहा गया कि नियम नहीं है?